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तत्त्वा॑ यामि सु॒वीर्यं॒ तद्ब्रह्म॑ पू॒र्वचि॑त्तये । येना॒ यति॑भ्यो॒ भृग॑वे॒ धने॑ हि॒ते येन॒ प्रस्क॑ण्व॒मावि॑थ ॥

English Transliteration

tat tvā yāmi suvīryaṁ tad brahma pūrvacittaye | yenā yatibhyo bhṛgave dhane hite yena praskaṇvam āvitha ||

Pad Path

तत् । त्व॒ । या॒मि॒ । सु॒ऽवीर्य॑म् । तत् । ब्रह्म॑ । पू॒र्वऽचि॑त्तये । येन॑ । यति॑ऽभ्यः॑ । भृग॑वे । धने॑ । हि॒ते । येन॑ । प्रस्क॑ण्वम् । आवि॑थ ॥ ८.३.९

Rigveda » Mandal:8» Sukta:3» Mantra:9 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:26» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:9


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः उसी विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! (तत्+सुवीर्य्यम्) सुप्रसिद्ध पवित्र उस शोभनवीर्य को (त्वाम्) तुझसे (यामि) माँगता हूँ और (पूर्वचित्तये) पूर्ण विज्ञान के लिये (तत्+ब्रह्म) उस आत्मबल या वेदज्ञान को तुझसे माँगता हूँ, (येन) जिस बल से तू (यतिभ्यः) जितेन्द्रिय पुरुषों को तथा (भृगवे) विपक्व बुद्धिवाले मनुष्यों को (आविथ) बचाता है। तथा (हिते+धने) कल्याणसाधक धन के लिये (येन) जिस बल से (प्रस्कण्वम्) प्रकृष्ट=उत्तम स्तुतिपाठक को बचाता हो, उसी पवित्र बल को मैं तुझसे माँगता हूँ ॥९॥
Connotation: - ब्रह्मचर्य्य से आत्मबल प्राप्त होता है। जो जन आत्मशक्ति को नहीं जानते हैं, वे ही महानीच पशु हैं। इस कारण हे मनुष्यो ! मन में ईश्वर को रखकर आत्मशक्ति को बढ़ाओ, तब ही तुम भी रक्षक और हितकर होओगे ॥९॥
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ARYAMUNI

अब परमात्मा से उक्त ऐश्वर्य्य तथा पराक्रम की याचना करना कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (पूर्वचित्तये) मुख्य अध्यात्मज्ञान के लिये (तत्, ब्रह्म) उस परमात्मा तथा (सुवीर्यं) उत्तम बल की (तत्, त्वा, यामि) आपसे याचना करता हूँ (येन) जिस ज्ञान तथा वीर्य्य से (हिते, धने) धन की आवश्यकता होने पर (यतिभ्यः) यत्नशील कर्मयोगियों से लेकर (भृगवे) मायामर्जनशील ज्ञानयोगी को देते तथा (येन) जिस पराक्रम से (प्रस्कण्वं) प्रकृष्ट ज्ञानवाले की (आविथ) रक्षा करते हैं ॥९॥
Connotation: - जिज्ञासु प्रार्थना करता है कि कर्मयोगिन् ! आप हमें ऐसी शक्ति प्राप्त कराएँ, जिससे हम परमात्मसम्बन्धी ज्ञानवाले तथा ऐश्वर्य्यशाली हों, हे प्रभो ! आप अधिकारियों की याचना पूर्ण करनेवाले हैं अर्थात् कर्मयोगियों से लेकर प्रकृष्ट ज्ञानवाले ज्ञानयोगी को देते हैं। हे पराक्रमसम्पन्न ! आप अपनी कृपा से हमें भी पराक्रमी बनावें, जिससे हम अपने कार्य्यों को विधिवत् करते हुए ज्ञानद्वारा परमात्मा की समीपता प्राप्त करें ॥९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तमर्थमाह।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! तत्प्रसिद्धम्। सुवीर्य्यम्=शोभनं वीर्य्यम्। तत्प्रसिद्धञ्च ब्रह्म=आत्मशक्तिम्। पूर्वचित्तये=पूर्णज्ञानाय। त्वा=त्वाम्। यामि=याचामि याचे। अत्र चेत्यस्य छान्दसो लोपः। हे परमात्मन् ! येन ब्रह्मणा त्वं। यतिभ्यः=यतीञ्जितेन्द्रियान् पुरुषान्। भृगवे=भृगुं विपक्वप्रज्ञं पुरुषञ्च। हिते=कल्याणे। धने हेतौ। आविथ=रक्षसि। येन बलेन प्रस्कण्वम्=प्रकृष्टस्तोतारञ्च। आविथ ॥९॥
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ARYAMUNI

अथैश्वर्याय परमात्मा प्रार्थ्यते।

Word-Meaning: - (पूर्वचित्तये) मुख्याध्यात्मज्ञानाय (तत्, ब्रह्म) तं परमात्मानं (सुवीर्यं) सुपराक्रमं च (तत्, त्वा) तं त्वां (यामि) याचामि वर्णलोपश्छान्दसः (येन) येन वीर्येण ज्ञानेन च (हिते, धने) इष्टे धने सति (यतिभ्यः) यतनशीलकर्मयोगिभ्य आदाय (भृगवे) मायामर्जनकर्त्रे ज्ञानयोगिने ददासि (येन) येन च वीर्येण (प्रस्कण्वं) प्रकृष्टज्ञानवन्तं (आविथ) रक्षसि ॥९॥